हिन्दी कविता : सब की चुप

तेरी भी चुप मेरी भी चुप
चुप सब से बड़ा हथियार है
 शब्दो के कोलाहल में चुप
मौन खड़ा सब देख रहा है
शब्दो की मारा मारी में चुप,
चुपचाप हर बाजी जीत जाता है,,,,,,2
किसने बोला और क्या बोला
ये चुप सारी बात समझ जाता है,
पहले सुनता , फिर हैं धुनता चुप
बहुत बड़ा गुणवान हैं, सही  गलत हर बात का चुप रखता
पूरा ध्यान हैं,
चुप बहुत बड़ा विद्वान हैं,,,,,,2
क्या कहना हैं कब कहना है
और किसे यहां कैसे कहना है,
ये सारी खूबी आप को चुप
चुपचाप सीखा देता हे,
इस समाज में क्या हैं शब्दो की
ताकत ये चुप आप को बता देता
है,,,,,,,2
चुप सही समय पर सही बात
को सही ढंग से कह जाता हैं,
चुप के आगे सारे हारे वो खामोशी से हर बार हर बाजी जीत जाता हैं,
चुप सब की सुनता कुछ ना कहता पर जब कहता तब उचित
ही कहता हैं,
चुप बड़ा होशियार हैं ये सब से
बड़ा हथियार हैं,,,,,,2
चुप कत्ल करे  बनकर गूंगा
वो शब्दो से कुछ नही कह
पाता है,
बड़े खामोशी से चुप
अपना हर काम कर के निकल जाता हैं, इसलिए तो कहते हैं
तेरी भी चुप मेरी भी चुप
चुपचाप काम बना लेते हैं,
शोर मचाकर कुछ ना होगा
चुपके से चुपचाप हम अपना
काम बना लेते हैं,,क्यों की चुप
जीतता हर एक बाजी ये सब से
बड़ा हथियार हैं,,,,,,,,,2
केवी: रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी )

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